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खरगोन में नहीं चला जाति फैक्टर, राम मंदिर और मोदी मैजिक हावी

राजनीतिक विश्लेषण- उमेश रेवलिया

खरगोन लोकसभा सीट मतदान होने से काउंटिंग तक प्रदेश लेवल पर सुर्खियों में रही। यहां कांग्रेसी दावे की हवा निकल गई। आदिवासी सीट में 20 लाख 46 हजार वोटरों को सहेजने वाली सीट पर प्रत्याशी घोषित होने के बाद एक रुमर चलाया गया कि कांग्रेस प्रत्याशी पोरलाल खरते अच्छे वक्ता हैं और प्रचंड बारेला समाज से आने वाले खरते भाजपा के गजेंद्र पटेल के सामने वोटों का खासा ध्रुवीकरण करेंगे। लेकिन जाति का ये फैक्टर ग्राउंड लेवल पर जीरो साबित हुआ और मोदी मैजिक, राम मंदिर जैसे भावनात्मक मुद्दे हावी रहे। 

खरगोन लोकसभा सीट पर चौथे चरण में 20 लाख 46 हजार वोटर्स में से 15 लाख 60 हजार मतदातों ने मतदान किया। खरगोन सीट भाजपा का गढ़ रही है। मध्य भारत के आम चुनाव के दौरान 1952 में खरगोन लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी। 17 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं। इनमें से 9 बार भाजपा प्रत्याशी, दो जनसंघ और छह बार कांग्रेस के प्रत्याशी विजय रहे। एक बार उपचुनाव हुआ। उपचुनाव में कांग्रेस पूर्व पीसीसी चीफ अरुण यादव 2006 में विजय रहे थे। सर्वाधिक बार भाजपा के प्रत्याशी रामेश्वर पाटीदार विजयी रहे। 1999 के बाद से अब तक भाजपा सतत जीतते आई है। खरगोन की सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है। भाजपा के गजेंद्र पटेल ने 2019 में कांग्रेस के प्रत्याशी डॉ गोविंद मुजाल्दा को हराया था। इसके बाद भाजपा हाईकमान ने गजेंद्र पटेल पर दोबारा विश्वास जताया और टिकट दिया। कांग्रेस ने खासी छाछ कर सेल टेक्स विभाग के अधिकारी रहे पोरलाल खरते जैसा नया चेहरा उतारा। लेकिन ये चेहरा टिकट घोषणा के कुछ दिनों तक खिलता नजर आया। भाजपा का मानना था कि कांग्रेस ने खरते के बारेला समाज से होने के चलते अवसर दिया था क्योंकि लोकसभा सीट में करीब 46 प्रतिशत बारेला समाज के बंधुओ का वर्चस्व है। वहीं दूसरी और करीब 10 से 15 प्रतिशत भिलाला समाज का वर्चस्व है, ऐसे में सांसद रहे गजेंद्र पटेल भिलाला समाज से आने के कारण उन्हें कमजोर आंकने की भूल कांग्रेस कर बैठी। लोकसभा सीट के जातिगत समीकरण पर नजर डाले तो यहां अनुसूचित जाति के 40%, ओबीसी 30 फीसदी, एससी के 5 प्रतिशत और अल्पसंख्यक 5 फीसदी, सामान्य वर्ग के 20% वोटर हैं। गजेंद्र पटेल को आठ विधानसभा सीटों में से पांच आदिवासी बहुल सीट बड़वानी, सेंधवा, राजपुर, पानसेमल, भगवानपुरा से लीड ना मिलने का दावा किया जा रहा था। आठ विधानसभाओं में से पांच कांग्रेस और तीन भाजपा के कब्जे में है।इसके बावजूद गजेंद्र पटेल ने खरते को एक लाख 40 हजार मतों से करारी शिकस्त दी है। भाजपा प्रत्याशी गजेंद्र पटेल का कहना है मुझे समाज का भरपूर सहयोग मिला है। उन्होंने कहा खरते मेरे अच्छे मित्र हैं लेकिन उन्होंने जाति के आधार पर समाज को बांटने का काम किया और समाज के लोगों ने करते को पूरी तरह से निकार दिया। समाज के लोगों का मुझे भरपूर आशीर्वाद मिला है। उन्होंने कहा कार्यकर्ताओं की मेहनत और मोदी जी के कारण मुझे जीत मिली है। हर समस्या का हल करने और विकास के लिए मैं तत्पर रहूंगा।

घोषणा पत्र से पहले निकाला विजयी जुलूस-

भाजपा के प्रत्याशी गजेंद्र पटेल जब 136000 वोटो से आगे चल रहे थे तो भाजपाइयों का उत्साह देखते ही बन रहा था। जीत का प्रमाण पत्र लेने से पहले ही भाजपा का विजय जुलूस बिस्टान रोड तिराहा से भाजपा जिला कार्यालय तक निकाला गया। खरगोन संसदीय क्षेत्र अंतर्गत खरगोन व बड़वानी जिले के आठ विधानसभा क्षेत्रों से रुझान आने के बाद कार्यकर्ता और पदाधिकारियों में उत्साह बढ़ने लगा। जैसे-जैसे श्री पटेल जीत की ओर अग्रसर होते गए खरगोन के क्रांतिसूर्य टंट्या भील विश्वविद्यालय स्थित मतगणना केंद्र के बाहर भीड़ लगने लगी। शाम चार बजे श्री पटेल, लोकसभा संयोजक और विधायक बालकृष्ण पाटीदार, भाजपा जिलाध्यक्ष राजेंद्रसिंह राठौर, लोकसभा सह संयोजक राजेंद्र यादव, पूर्व जिलाध्यक्ष बाबूलाल महाजन, रणजीतसिंह डंडीर, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य परसराम चौहान, कल्याण अग्रवाल, जितेंद्र पाटीदार, पूर्व विधायक आत्माराम पटेल आदि के साथ मतगणना स्थल पहुंचे। 

ग्राउंड केवल पर जयस का नहीं चला जादू-

कांग्रेस प्रत्याशी पोरलाल खरते का नाम का जैसे ही अनाउंसमेंट हुआ जयस की पृष्ठभूमि रखने वाले खरते को जयस का भारी समर्थन मिलने की बात की जा रही थी। हालांकि भगवानपुरा विधानसभा सीट से खरते को करीब 15000 की लीड मिली है। लेकिन बड़वानी जिले की बड़वानी, पानसेमल और राजपूर सहित सेंधवा विधानसभा सीटों से जिस तरह की बड़ी लीड का दावा किया जा रहा था उसकी हवा निकल गई। 

खरते ने ऊपर से आई राशि क्यों नहीं की खर्च-

कांग्रेसी सूत्रों की माने तो पोरलाल करते की बड़ी हार का कारण कहीं ना कहीं आर्थिक विषमता भी रही है। मतदान के दिन हालात ये बने की दोपहर 3 बजे तक कई बूथ से कार्यकर्ता नदारद हो गए। कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने बताया बूथ लेवल पर काम करने के लिए और अन्य लोगों से काम करवाने के लिए धन की आवश्यकता भी पड़ती है लेकिन जहां 2 लाख खर्च करने चाहिए थे वहां पर खरते ने 25000 भी नहीं दिए। 

बड़े नेताओं की बेरुखी नहीं जुटा पाई वोट-

पोरलाल खरते अच्छे वक्ता तो रहे लेकिन उनके साथ बड़े नेता प्रचार के लिए लोगों से संपर्क करते हुए दिखाई नहीं दिए। केवल कुछ सभाओं में ही नजर आए। पूर्व मंत्री डीआर विजयालक्ष्मी साधौ, पूर्व गृह मंत्री वाला बच्चन, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव के खरगोन लोस में होते हुए भी कांग्रेस प्रचार में कमजोर रही। कांग्रेसी सूत्र बताते हैं कि कई प्रमुख शहरों की गलियों तक करते प्रचार के लिए पहुंचे ही नहीं। 

नरेंद्र पटेल को भी मिली करारी शिकस्त-

खरगोन विधानसभा खरगोन जिले की दो विधानसभाएं भीकनगांव, बड़वाह खंडवा लोकसभा सीट में भी आती हैं। खंडवा लोकसभा सीट से कांग्रेस ने हारे हुए प्रत्याशी नरेंद्र पटेल पर दाव लगाया था, जो 2023 की बड़वाह विधानसभा सीट से बुरी तरह से हारे। उन्हें कांग्रेस से ही भाजपा में गए सचिन बिरला ने करारी हार दी थी उसके बावजूद कांग्रेस ने कमजोर प्रत्याशी पर दाव लगा दिया। कहां जा रहा था कि जिस नेता के कुर्ते की जेब नहीं है। ऐसे नेता को टिकट दिया गया। बताया जा रहा है बूथ के कार्यकर्ताओं को चाय नाश्ते और प्रचार के लिए तक पैसा नसीब नहीं हुआ। नरेंद्र पटेल का नाम घोषित होते ही भाजपा के सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल को पहले से ही वॉकओवर देने की बात कांग्रेसी कह रहे थे। बहरहाल कांग्रेस को इस बात पर मंथन करना चाहिए कि उन्होंने किस तरह के प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था और क्या कमियां रह गई।

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